राघवाचार्य जी महाराज के भजनों पर मंत्रमुग्ध हुए श्रोता
लखनऊ। जगतगुरु स्वामी राघवाचार्य जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के अमृत वर्षा के अंतिम दिन नव योगेश्वर संवाद, अवधूत उपाख्यान, श्रीमद्भागवत अनुक्रमणिका कथा सुनाई। निराला नगर स्थित माधव सभागार में चल रही कथा के अंतिम दिन श्रीमद् भागवत का रसपान करने भक्तो की भीड़ देखते ही बन रही थी। कथा की शुरुआत हनुमान चालीसा के बाद मुख्य यजमान मानसरोवर परिवार के मुखिया महेश गुप्ता, लक्ष्मी गुप्ता ने व्यासपीठ की आरती करके की। कथा सुमिरन तथा व्यासपीठ से महाराज जी का आशीर्वाद लेने राजू, लकी, तन्नु, सत्य प्रकाश गुलेरे, डा. अजय गुप्ता, डॉ. अनिल गुप्ता, हेमंत दयाल अग्रवाल, महेंद्र, एसके गोपाल, आलोक दीक्षित पहुंचे।
स्वामी राघवाचार्य जी महाराज ने कथा में विभिन्न प्रसंगों का वर्णन किया। स्वामी जी ने कथा में अग्र पूजा के दौरान शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण का अपमान करने के बाद श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध, गुरू भक्त सुदामा व श्री कृष्ण का द्वारिका में परम स्नेही मिलन, श्री कृष्ण का स्वधाम गमन व अंत में राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्ति के प्रसंगों को सुनाया। स्वामी महाराज जी ने कहाकि श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना और भगवान श्रीकृष्ण का नाम लेना चाहिए। इससे मनुष्य को मोक्ष मिलता है।
उन्होंने कहाकि त्रेता युग में भगवान विष्णु की भक्ति को सर्वस्व माना है। द्वापर युग में तप को विशेष महत्व दिया है। कलयुग में श्रीमद् भागवत कथा श्रवण को मोक्ष के द्वार का रास्ता माना है। कलयुग में आयु कम है। इसलिए भागवत कथा श्रवण से मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। राजा पारीक्षित को कथा श्रवण के सात दिन बाद मोक्ष मिला था। भगवान की निस्वार्थ भाव से अनन्य भक्ति करना चाहिए। भगवान से कुछ न मांगे। प्रभु भक्ति करते रहे। प्रभु खुद फल देते है। सारे पापों का नाश करते है।
उन्होंने कहा कि ईश्वर को धन, दौलत व यज्ञों से कोई सरोकार नहीं है। वह तो केवल स्वच्छ मन से की गई आराधना के अधीन होता है। समय-समय पर भगवान को भी अपने भक्त की भक्ति के आगे झुककर सहायता के लिए आना पड़ा है। भगवान श्रीकृष्ण ने मित्रता, सदाचार, गुण, अवगुण, द्वेष सभी प्रकार के भावों को व्यक्त किया है।
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