लखनऊ (शम्भू शरण वर्मा)। दोपहर के करीब सवा दो बजे थे, जैसे ही सामने डायल 112 की गाड़ी आती दिखी, हाथों में कॉपी व पेंसिल लिए बच्चे दौड़ पड़े। गाड़ी रुकते ही एक महिला कांस्टेबल उतरी तो रामसागर, लकी, अंशिका, अनन्या, शुभम, पुनीत सहित सभी बच्चे खुशी से झूम उठे। वर्दी वाली दीदी ने सभी बच्चों को सड़क पार कराया और सड़क किनारे बने फुटपाथ पर पहुंची। जहां बिछी टाट पर सभी बच्चे शालीनता से बैठ गए और उनमें पढ़ने की ललक साफ दिख रही थी। इस दौरान वर्दी वाली दीदी ने अपने साथ लेकर आई पेंसिल बच्चों में वितरित की। बच्चों की वर्दी वाली दीदी है डायल 112 में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत सरिता शुक्ला। जो अपनी ड्यूटी पूरी होने के बाद गरीब बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रही हैं। सरिता शुक्ला की तैनाती जानकीपुरम इलाके में है। जानकीपुरम विस्तार इलाके में चंद्रिका टॉवर के पास लगभग प्रतिदिन लगने वाली उनकी क्लास में करीब 2 दर्जन बच्चे पढ़ना लिखना सीख रहे हैं।
वर्ष 2011 में पुलिस सेवा में भर्ती हुईं मूल रूप से प्रतापगढ़ निवासी सरिता शुक्ला बीते एक माह से लगभग प्रतिदिन पुलिस की नौकरी पूरी करने के बाद बचे हुए समय में सड़क किनारे झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देकर शिक्षा का प्रकाश फैला रही हैं। सरिता ने बताया कि वर्ष 2016 से 2018 तक उनकी तैनाती अम्बेडकर नगर जनपद में रही। इस दौरान वो वहां भी ड्यूटी पूरी होने के बाद बच्चों को पढ़ाती थी। यही नहीं वो अपने पैसों से बच्चों को कॉपी, किताब और पेंसिल आदि भी दिला रही हैं। जिससे कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित न रह जाये।
अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस के मौके पर बीते 24 सितंबर को बाल निकुंज इंटर कॉलेज मोहिबुल्लापुर गर्ल्स विंग शाखा में यूनिवर्सल पीस फेडरेशन ऑफ इंडिया और बाल निकुंज स्कूल्स एंड कॉलेजेस के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में गरीब बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रही लखनऊ कमिश्नरेट की महिला कांस्टेबल सरिता शुक्ला को विश्व शिक्षा शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
पिता से मिली प्रेरणा
सरिता बताती हैं कि उनके पिता रामनिवास शुक्ला हमेशा गरीब जरूरतमंदों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं। अक्सर वो गरीब बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उनकी मदद करते हैं। उन्हीं से प्रेरित होकर सरिता ने भी अंतिम पंक्ति के बच्चों को अक्षर ज्ञान देने में जुटी हैं। बीते एक माह से पढ़ रहे बच्चों में कुछ तो प्राथमिक विद्यालय खरगापुर में भी पढ़ने जाते हैं। लेकिन कई बच्चे इससे वंचित है। ऐसे में सरिता भी प्रयास कर रहीं हैं कि सभी बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में हो जाये।
सरिता शुक्ला के इस सराहनीय पहल से झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले नौनिहालों में शिक्षा की ललक जागी है। प्रतिदिन दोपहर करीब पौने दो बजे से ही बच्चे एकत्र होकर वर्दी वाली दीदी की प्रतीक्षा करते है। जैसे ही दीदी आती हैं बच्चे पढ़ने के लिए बैठ जाते हैं। वर्दी वाली दीदी को शिक्षिका के रूप में पाकर बच्चे बहुत खुश है और मन लगाकर पढ़ते है। झोपड़ी में रहकर घरों में काम करने वाली मीरा के तीन बेटे भी मन लगाकर वर्दी वाली दीदी से पढ़ते है। सरिता के इस सराहनीय पहल की मीरा सहित अन्य लोग जमकर तारीफ करते हैं। सरिता ने बताया कि प्रातः 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक उनकी ड्यूटी रहती है। जिसके पश्चात वह बच्चों के पास पहुंचती है और लगभग दो घंटे वो बच्चों के बीच शिक्षिका की भूमिका में रहती हैं।
एक ओर जहां बच्चों को शिक्षित करने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाएं चला रही है वहीं समाज में सरिता शुक्ला जैसे लोग भी हैं जो अंतिम पंक्ति के बच्चों की अंधेरी जिंदगी में अक्षर ज्ञान का उजियारा फैलाने का काम कर रहे हैं।सरिता शुक्ला बच्चों को शिक्षा देने के साथ ही उनके परिजनों को उनकी जिम्मेदारी का अहसास भी करा रही हैं। वे कहती हैं कि शिक्षा से ही जीवन की सार्थकता है, शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है। सरिता कहती हैं कि उनका उद्देश्य केवल इतना है कि कोई भी बच्चा गरीबी के कारण शिक्षा से वंचित न रह जाए। इसके लिए वे बच्चों को पाठ्य सामग्री भी उपलब्ध कराती हैं। शिक्षा के व्यवसायीकरण के दौर में गरीब परिवार के बच्चों को सेवा भाव से शिक्षित बनाने का सरिता का जुनून समाज के लिए प्रेरणादायक है।
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