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अभिभावक व शिक्षक बच्चों को दें बेहतर करने की सलाह : संजीव कुमार

ना बनाये बच्चो के मानसिक स्थिति पे कम अंक आने का तनाव

रिजल्ट घोसित हो चुके हैं जैसा की देखा जाता है हर साल रिजल्ट आने के बाद बच्चें अपने परिणाम को लेकर काफी मानसिक तनाव में आजाते हैं , और बच्चों में खुदखुशी की घटना अधिकतम संख्या में देखी जाती है।

संजीव कुमार
(मनोविज्ञानी, काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट)

 















अच्छे अंक पाने वाले विद्यार्थी की सराहना सारे लोग करने लग जाते पर वहीँ उन बच्चों का ख्याल नहीं रख पाते, जो किसी कारणवस या अपनी कम अभिक्षमता की वजह से परीक्षा में कम अंक लाते या कुछ विफल भी हो जाते!

जिस विद्यार्थी के अंक किसी करणवस कम आये उनका खास ख्याल रखना होता है जरूरी! अभिभावक व शिक्षक को यह ध्यान रखना होगा कि कौन सा बच्चा चाहता उसका अंक कम आये , कभी कभी बच्चे बहोत अच्छा करते हैं पर उनकी अभिक्षमता कम या कुछ लापरवाहियों से मार्क्स कम आने पे वह इतने तनाव महसूस करने लगते हैं जिससे उनके मन में तमाम तरह के ख्याल जन्म ले रहे होते हैं : जिसमे बच्चे कि मानसिक स्थिति पर गहरा असर पड़ने लगता है और बच्चे अनेको समस्याओ से घिरते चले जाते जैसे- (तनाव , चिंता, खुदखुशी, डिप्रेशन, पैनिक अटैक, सोशल डिस्टैन्सिंग, चिड़चड़ाहट , फॅमिली से दूरिया) आदि!

देखा जाता है की जब रिजल्ट घोषित होता है तो अभिभावक व शिक्षकों का अपने विद्यार्थियों से ज्यादा अंक लाने की उम्मीद रखना बच्चों पे तनाव का कारण बनने लगता जबकि कम अंक व विफल होने वाले बच्चों का रखना होता हैं ख्याल- उस वक्त अपने रिजल्ट से चिंतित बच्चा अपने आपको डिमोटिवेट महसूस कर रहा होता है - अगर अभिभावक और शिक्षक अपनी भूमिका बच्चो में "मोटीवेट करने और आगे कैसे अच्छा किया जा सकता कमियां कहा रह गईं आदि पे दें ध्यान तो बच्चा कभी गलत रास्तें का चुनाव ना कर मानसिक रूप से स्वास्थ्य महसूस कर पायेगा और शायद यह एक कदम आपके बच्चे के भविष्य को गलतियों से सुधार कर सुनहरा भविष्य बना सकता!

शिक्षक व अभिभावक की बातों का बच्चों पे पड़ता है गहरा असर इसलिए उन बच्चों की तुलना कभी दूसरे बच्चे से न करें !


देखा जाता है की बच्चो के परिणाम के पश्चात जो बच्चा सफल नहीं हुआ या कम अंक आने पे उनकी तुलना ज़्यदा अंक लाने वाले बच्चों से हर रोज कि जाती है , या बच्चो को क्लास में सबके सामने हुमिलियट (अपमानित) किया जाता: उनके लिए कुछ ऐसे शब्दों के उपयोग किये जाते " ये तो कुछ नहीं कर सकता/सकती ये ऐसे ही रह जायेंगे , कभी कुछ नहीं कर सकते यें " आदि तरह के वाक्य उपयोग होते , जबकि हो सकता बच्चे के मार्क्स किसी गलतीवस कम आये हो या होसकता बच्चे का रुझान पढ़ाई में ना बल्कि उसकी अभिक्षमता किसी और क्षेत्र में हो जैसे - स्पोर्ट्स गेम , कंप्यूटर नॉलेज , आर्मी , पेंटिंग , क्राफ्ट , स्केचिंग , सिंगिंग/ डांसिंग आदि में हो स्किल्स को पहचाने और उन्हें बढ़ावा दें , बच्चों को सही गाइडेंस की आवश्यकता होती है _

बच्चे सब समझेंगे उन्हें उनके तरीके से समझाने का प्रयास कर उन्हें बताएं , उनकी स्किल से सम्बन्धित सारे क्षेत्र में जाने के लिए पढ़ाई को साथ - साथ कैसे लेके चलें! बच्चे समझ भी जायेंगे उन्हें किसी प्रकार का तनाव व चिंता आदि नहीं घेर पायेगी और सहज महसूस कर अपने भविष्य को बेहतर बना पायेंगें! 

होती है तो बस थोड़े साथ और मोटिवेशन की जरूरत 

  टॉपर्स बनने का सपना -

संजीव कुमार का कहना है की कुछ विद्यार्थीयों का सपना टापर्स बनने का होता और उस उम्मीद पर खरा न उतर पाने पर बच्चों का मनोबल टूट जाता!

इन सपनो का बिंज कहीं न कहीं उनके साथी , शिक्षक व अभिभावक द्वारा बोया जाता है जबकि बच्चो को इतना समझने योग्य बनाना चाहिए की वह खुद समझ पाएं की उनके लिए क्या सही है और क्या गलत!

बच्चों को अपनी इक्छा और रूचि के हिसाब से सही गाइडेंस लेकर ही विषयों का चुनाव करना चाहिए! कई बार बच्चे अपने अभिभावक के दबाव के कारण विषयों का चुनाव करने में गलती कर देते! अभिभावक गलत नहीं होते उन्हें अपने बच्चो की चिंता होती जिससे की उनका बच्चा अच्छा करे पर अभिभावक को ये बात समझना पड़ेगा और उस क्षेत्र से जुड़े एक्सपर्ट के सही परामर्श और निर्देशन लेकर बच्चों को बनाना होगा बेहतर!

अभिभावक व स्टूडेंट्स कैरियर कॉउंसलर, काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट अपने शिक्षक आदि से ले सकते सलाह जहां उनके बच्चे के रूचि को समझ कर सही सलाह और वह किस क्षेत्र में अच्छा कर सकता/सकती है इसकी सही जानकारी दी जाती।


(यह लेखक के अपने विचार हैं।)



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